Sunday, February 7, 2010

गुजरा करते थे जब तेरी गलियों से
खिलखिलाती हंसी का एक सलाम मिलता था
रूठी ऐसे तेरो किस्मत मुझसे
अब सलाम तो दूर तेरे ज़ख़्मी दिल से एक बद्द्दुआ भी नहीं मिलती

1 comment:

  1. Amruta mam bravo!!! keep it up!!! ur poem is enreached with full of bright thoughts

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