Tuesday, February 9, 2010

मुझसे कुछ तू सिख भला
क्यों यैसे तू घबराये
आंधी तूफान आये कई, डाटा रहा
रेगिस्थान की तपतपाती लू या बर्फीले तूफान
सब मुझसे टकराए
बरसों बीत गए यूँही
देख,खड़ा हूँ आज भी सीना ताने ।


मुझसे कुछ तू सिख भला
क्यों संभल ना पाए
चट्टानों से टकरा उन भले
वादियों से गुजरती हुई अपनी राह धुन्दू
या फिर ऊँची टेढ़ी पहाड़ों से गिरुं
बरसों बीत गए यूँही ,
पर बहती हूँ , आज भी वही पुराणी सुर और ताल में


मुझसे कुछ तू सिख भला
धीर क्यों ना धरे
चाहत हे कितने दिनों की
उसके दीदार को
पर बैठा हूँ में चकोर , कब से और आज भी
वही इक आस लगाये ।

मुझसे कुछ तू सिख भला
क्यों मन मैला करे
काला कौवा में सही
पर धर्म कर्म न छोदुं
सांज सवेरे देर अंधेर सबके आँगन चमका उन .


मुझसे कुछ तू सिख भला
क्यों ऐसे तू संकुचाये
कितने आये कितने गए
सब मुझमे ही समाये फिर तू रौंदे क्यों मुझे
और क्या धुन्दन को तू आये
माया रूपी इस संसार में
क्या लागे तेरा और क्या मेरा....

No comments:

Post a Comment