Wednesday, May 26, 2010

रंगों की बौछार न सही , कुछ छींटें मेरे दामन में आये तो सही
नीले आसमान में सजतें हों ,जैसें तारें कई ।
सफ़ेद साढी में लिपटी बेजान पत्थर , शिल्पकार तो हो कोई ,
ना हो भले हमसफ़र , हमराज़ , हमदर्द तो हो कोई ।


लाल गुलाबी हरी या नीली, ना हो कोई चूड़ी मेरी ,
जकड़े ना लोहे के ज़ंजीर मेरी इन कलाइयों में कोई ।
ना पहनाएं भले कोई छम-छम पायल ,
ना सजाएँ बेड़ियाँ , घुंगरू की ,ज़ख़्मी इन पैरों में कोई ।


ना चहुँ में माथे में इक रेखा लाल अविर,
ना सजू बहार में वादी सी कोई ।
ना हसूँ खिलखिलाती कलि सी कोई ,
सफ़ेद इस इक दमन में लगाए ना दाग कोई ।