Wednesday, May 26, 2010
नीले आसमान में सजतें हों ,जैसें तारें कई ।
सफ़ेद साढी में लिपटी बेजान पत्थर , शिल्पकार तो हो कोई ,
ना हो भले हमसफ़र , हमराज़ , हमदर्द तो हो कोई ।
लाल गुलाबी हरी या नीली, ना हो कोई चूड़ी मेरी ,
जकड़े ना लोहे के ज़ंजीर मेरी इन कलाइयों में कोई ।
ना पहनाएं भले कोई छम-छम पायल ,
ना सजाएँ बेड़ियाँ , घुंगरू की ,ज़ख़्मी इन पैरों में कोई ।
ना चहुँ में माथे में इक रेखा लाल अविर,
ना सजू बहार में वादी सी कोई ।
ना हसूँ खिलखिलाती कलि सी कोई ,
सफ़ेद इस इक दमन में लगाए ना दाग कोई ।
Tuesday, March 9, 2010
when all is gone
who am I??? am I that who???
again, who is that who?
cries the new life born and asks loud,
who am I and who are you?
Greed , lust and desire propels
run,run,and run,fast and hard,
dare miss it,grab it, hold tight and don't let free,
its money all around, that triumphs and speaks,
Laughter resounds, but topples on floor,
wants more and more,
is it noy enough??
engulf it all, still pushes tight,
till vomits , shattered and scattered.
Ego echoes, pride drums,
everyone cries foul,
I am complete, the achiever, the conquerer.
Alas!!! He stumbled,fell down tired
cracks head,fractures bones,
gone the evil intellect,the impure senses
and, at last says- I am none ,I am none!!!
dont know , who am I !!
why didn't I seek the light,
why didn't I lift the veil,
repents that sinner, the murderer of the soul,
when all is gone........
Saturday, February 20, 2010
लहरों की तरह उठती , गिरती
ये भाब्नाएं भी , खूब खेल दिखाती हैं ।
सब चीज़ बिकाऊ हो गयी हे ,
अनमोल अरमानों का मोल करता हे इंसान ,
कभी कोई सिक्कों में तोलता हे
कभी कोई रहम भीख में देता हे ,
तमाशा क्यों बनता हे 'ये कवि' अपने उन जज्बातों का ,
खरीददार होंगे कई , पर कदरदान कोई भी नहीं ।
झूठी थी वो कहानी ,
जिसे तू हक्कीकत समजता हे ।
तेरी साँसों में ये बेचैनी कैसी ?
आवाज़ में ये दर्द कैसा ?
aur har नज़्म में ये आंसूं कैसे ?
सब अपने लिए , बस !!!
तू तो औरों की अब सोचता भी नहीं , भूल सा गया हे ,
जिनके लिए कभी तेरी कलम रोटी थी ,
न वो कलम हे न ही एक कतरा सयाही ।
जो तू बोएगा , वही पायेगा ,
आंसूं से नाम पड़ी उस बिज को ,और मत सींच ,
फेंक आ कंही दूर , किसी बंज़र पड़ी ज़मीन पर ,
जो ताप -ताप कर ,पत्थर सी हो जाये ,
तू चाहे अगर भी , वो पिघल ना पाए ।
कोशिश कुछ और ही थी सायद , पर में लिख कुछ और गया ,
माफ़ करना मेरे यार 'सायर'
कंही कोई गुस्ताकी , ना हो गयी हो ।
Tuesday, February 9, 2010
क्यों यैसे तू घबराये
आंधी तूफान आये कई, डाटा रहा
रेगिस्थान की तपतपाती लू या बर्फीले तूफान
सब मुझसे टकराए
बरसों बीत गए यूँही
देख,खड़ा हूँ आज भी सीना ताने ।
मुझसे कुछ तू सिख भला
क्यों संभल ना पाए
चट्टानों से टकरा उन भले
वादियों से गुजरती हुई अपनी राह धुन्दू
या फिर ऊँची टेढ़ी पहाड़ों से गिरुं
बरसों बीत गए यूँही ,
पर बहती हूँ , आज भी वही पुराणी सुर और ताल में
मुझसे कुछ तू सिख भला
धीर क्यों ना धरे
चाहत हे कितने दिनों की
उसके दीदार को
पर बैठा हूँ में चकोर , कब से और आज भी
वही इक आस लगाये ।
मुझसे कुछ तू सिख भला
क्यों मन मैला करे
काला कौवा में सही
पर धर्म कर्म न छोदुं
सांज सवेरे देर अंधेर सबके आँगन चमका उन .
मुझसे कुछ तू सिख भला
क्यों ऐसे तू संकुचाये
कितने आये कितने गए
सब मुझमे ही समाये फिर तू रौंदे क्यों मुझे
और क्या धुन्दन को तू आये
माया रूपी इस संसार में
क्या लागे तेरा और क्या मेरा....
Sunday, February 7, 2010
Saturday, February 6, 2010
वोह हरा पत्ता जो हवा के संग खेलता था
उसे किसके बेरुखी ने बहुत जलन दी ,मुरझा गया वोह
पर वो तो मेरी जिंदगी की हरियाली हे
ताज़े हवा के स्पर्श से फिर मस्ती में झूमेगा
वो खिलखिलाता था जो ,सूरज की रोशनी के के साथ
उसे किसीने अपने घने बालों के साये में धक् दिया
वो तो मेरा सूरजमुखी हे
नयी सुबह की नयी रौशनी में
अंगडाई लेकर फिर हसेगा
वो लो जो रोशन करता था चेहरा मेरा
किसके आँचल की खुसबू ने जरा बैचैन कर दिया ,पर बुझा नहीं वो
वो तो दीपक हे मेरा
खुद को जला कर औरों को उजाला देता हे ।