Tuesday, December 8, 2009

शायरी

झुलस रही हे मेरी भाब्नाएं
तेरी इन बेरुखी नज़रों से
कांप रही हे मेरी रूह
तेरी इन ठंडे एह्साशों में
ये नर्म धुप जो सेंकती थी मेरे नम पड़े इन हाथों को
अब चुभतीं हैं मेरे बदन में
क्या हुआ उन वादों का,उन कसमों का?तू कहता था ,जान दे कर भी निभाएगा
ना मेरा प्यार बदला था ना मेरी वफ़ा
इस झूठी दुनिया के रंग में तू ही बदल गया हे

1 comment:

  1. very good use of words 'kaamp rahi hai rooh thande ehsaason se!!' 'narm dhoop chubhti hai!!'
    well written...waiting for more madame

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