Saturday, February 6, 2010

वोह हरा पत्ता जो हवा के संग खेलता था

उसे किसके बेरुखी ने बहुत जलन दी ,मुरझा गया वोह

पर वो तो मेरी जिंदगी की हरियाली हे

ताज़े हवा के स्पर्श से फिर मस्ती में झूमेगा

वो खिलखिलाता था जो ,सूरज की रोशनी के के साथ

उसे किसीने अपने घने बालों के साये में धक् दिया

वो तो मेरा सूरजमुखी हे

नयी सुबह की नयी रौशनी में

अंगडाई लेकर फिर हसेगा

वो लो जो रोशन करता था चेहरा मेरा

किसके आँचल की खुसबू ने जरा बैचैन कर दिया ,पर बुझा नहीं वो

वो तो दीपक हे मेरा

खुद को जला कर औरों को उजाला देता हे ।

2 comments:

  1. You are spot on and very correct.Keep encouraging people to live a life for which they have been sent to this world.Keep the good work going.Excellent dear...

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  2. brilliant!!
    one change suggested
    replace 'aachal ki khooshboo' with 'aachal ka jhonka'

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